01-02-79  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

मनन-शक्ति ही माया जीत बनने का साधन

मनन द्वारा मग्न रहने वाले मास्टर भगवान बच्चों बच्चों प्रति बाप-दादा बोले –

आज बापदादा बच्चों के अनेक प्रकार के पुरूषार्थ की विधि को देखते हुए बच्चों के उमंग, उत्साह, मिलन की लगन, स्नेह का संकल्प सदा सहयोगी बनने के कार्य में तत्पर रहना, सब संग तोड़ एक संग जोड़ने की मेहनत को देख बापदादा हर्षित भी हो रहे थे और साथ-साथ स्नहे के कारण तरस भी पड़ रहा था - हरेक अपने-अपने यथाशक्ति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तीव्रगति से लगे हुए हैं। सबकी एक ही इच्छा है कि फास्ट जावें फर्स्ट आवें। दिन रात इसी लगन में चल रहे हैं - लेकिन लक्ष्य एक है, लगन भी एक से ही है। साथ भी एक का ही है फिर भी कोई महावीर हैं और कोई बहुत मेहनत अनुभव करते हैं - कोई सहजयोगी हैं - कोई पुरुषार्थी योगी हैं, कोई सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं - कोई सर्व प्राप्ति करने में खूब लगे हुए हैं। कोई मायाजीत हैं - और कोई माया के विघ्नों से युद्ध करने में लगे हुए हैं - कोई के मन का आवाज़ जो पाना था पा लिया - और कोई का आवाज़ है अभी पा रहे हैं। कोई सदा साथ का अनुभव करते और कोई सदा साथी बनाने के प्रयन्त में रहते। ऐसा देख बापदादा को मेहनत करने वालों के ऊपर तरस पड़ता है - एक बाप के बच्चे दो प्रकार के क्यों? और यह मेहनत भी कब तक? यह अलौकिक जन्म जिस जन्म को वरदान है क्योंकि वरदाता द्वारा यह जन्म है - ऐसा वरदानी जन्म प्राप्त होते हुए भी यह जन्म भी मनाने के बजाए मेहनत में ही जाए तो ऐसा वरदानी जन्म फिर कब मिलेगा! इसलिए इस वरदानी जन्म का हर सेकेण्ड और सर्व प्राप्ति करने का सुहावना सेकेण्ड है। ऐसे समय को पाने के बजाए मेहनत में लगाना क्या अच्छा लगता है! चाहते भी नहीं हैं फिर भी कर लेते हैं - क्यों? आज बापदादा ने विशेष कारण देखे। मूल कारण है जो चाहते नहीं हो लेकिन परवश हो जाते किसके वश हो जाते हो - उसको भी अच्छी तरह से जानते हो। जानते हुए बचने का प्रयत्न करते हुए भी फिर चक्कर में आ जाते हो - क्योंकि माया भी जानी जाननहार रूप में आती है - वह भी जानती है कि इन ब्राह्मण आत्माओं का मुख्य आधार बुद्धि योग है – दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप से मिलन मना सकते तो माया भी पहले-पहले बुद्धि में वार करती है। कमजोर बना देती है। किस द्वारा? माया का विशेष बाण व्यर्थ संकल्पों के रूप में होता है। इस बाण द्वारा दिव्यबुद्धि को कमजोर बना देती है और कमज़ोर बनने के कारण परवश हो जाते हैं। कमज़ोर व्यक्ति जो चाहे वह नहीं कर पाते इसलिए चाहते हो लेकिन कर नहीं पाते हो। इस कारण का निवारण सर्वशक्तिवान बाप द्वारा जो प्राप्त हुआ है उस शक्ति को कार्य में नहीं लगाते हो। वह विशेष शक्ति है मनन शक्ति। मनन शक्ति को यूज़ करना नहीं आता। मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुराक है। खुराक को न खाने से कमजोर बन जाते। और कमज़ोर होने के कारण परवश हो जाते। मनन शक्ति का विस्तार बहुत बड़ा है। लेकिन विधि नहीं आती।

जब से ब्राह्मण जन्म हुआ तब से अभी तक डायरेक्टर बाप द्वारा जीवन के कितने टाइटिल्स सुने हैं - अगर वर्णन करो तो पूरी लम्बी माला बन जाए - भक्ति मार्ग में भी सुमिरण करने के अभ्यासी हैं - एक-एक मणके पर सुमिरण करते हैं। भक्ति में सुमिरण शक्ति है और ज्ञान में स्मृति की शक्ति है। जब भक्त आत्मायें अपनी शक्ति को नहीं भूलती। अल्पकाल की विधि से अल्पकाल की सिद्धि को पाती रहती हैं - तो आप ज्ञानी तू आत्मायें स्मृति की शक्ति की विधि को क्यों भूल जाते हो। अगर रोज़ अमृतवेले अपने एक टाइटिल को भी स्मृति में लाओ और मनन करते रहो तो मनन शक्ति से सदा बुद्धि शक्तिशाली रहेगी। शक्तिशाली बुद्धि के ऊपर माया का वार नहीं हो सकता अर्थात् परवश नहीं हो सकती। तो मूल कारण है बुद्धि की कमजोरी और कमजोरी का निवारण है मनन शक्ति।

जैसे आजकल की विशेष आत्मायें अर्थात् पढ़े लिखे लोग जैसा कार्य होगा जैसा स्थान होगा वैसी अपनी ड्रेस चेन्ज करते हैं - आपके जड़ चित्रों का भी हर समय ड्रेस चेन्ज करते हैं। भविष्य देवताई रूप में भी हर कार्य की ड्रेस अलग-अलग होगी। यह संस्कार भविष्य का वर्तमान के आधार पर है - इस समय का फैशन वा रीति रसम सतयुग में तो चलेगी लेकिन आपके जड़ चित्रों में भी रस्म चली आ रही है - तो संगमयुग की रीति रसम कौन सी है? जैसा कार्य करते हो वैसे टाइटिल प्रमाण अपना स्वरूप याद रखो - सबसे ज्यादा फैशनेबुल संगमयुगी ब्राह्मण हैं। जैसा समय वैसा स्वरूप - यह स्वरूप भी आपकी ड्रेस है। जैसी स्मृति वैसी वृति वैसी दृष्टि और वैसी स्थिति अर्थात् स्वरूप। जैसे आजकल का फैशन है ना जैसा श्रृंगार - वस्त्र भी वैसे, तिलक भी वैसे लगावेंगे तो आँखों का श्रृंगार भी वैसा करेंगे। तो सबसे फैशनेबुल आप ब्राह्मण हो। ऐसी स्मृति वृति और दृष्टि बनाओ। स्मृति है तिलक और दृष्टि है आँखों का श्रृंगार - और वृति है मेकप करना। वृति से जैसा परिवर्तन चाहो वैसे कर सकते हो। तो सदैव रूहानी सजी सजाई मूर्त हो विश्व को परिवर्तन करने वाले!

मनन शक्ति अर्थात् अपने अनेक टाइटिलज़ अर्थात् स्वरूप स्मृति में रखो। अनेक गुणों के श्रृंगार को स्मृति में रखो - अनेक प्रकार के खुशी की प्वाईन्टस स्मृति में रखो, रूहानी नशे के प्वाईन्टस स्मृति में रखो, रचता बाप के परिचय की प्वाईन्टस बुद्धि में रखो, रचना के विस्तार की प्वाईन्टस स्मृति में रखो। याद द्वारा अनेक प्रकार के अनुभव और प्राप्तियों की प्वाईन्टस को स्मृति में रखो तो मनन शक्ति का साधन कितना बड़ा है! जो चाहे वह मनन करो। जो आपकी पसन्दी हो वह पसन्द करो - तो मनन करते मगन अवस्था भी सहज प्राप्त हो जावेगी। परवश के बजाए मायाजीत बनने का वशीकरण मन्त्र सदा साथ रहेगा और माया सदा के लिए नमस्कार करेगी। संगमयुग का पहला भक्त आपकी माया बनेगी। मास्टर भगवान बनो तो भक्त भी बने ना। अगर खुद ही भगत होंगे तो वह किसका भक्त बने। तो भक्त बनेंगे वा मास्टर भगवान बनेंगे - इसका सहज साधन सुनाया। मनन शक्ति को बढ़ाओ। समझा।

बंगाल बिहार का ज़ोन तो श्रृंगार करना जानता है, जैसे देवियों को बहुत सजाते हैं, अपने जड़ चित्रों को सजाने आता है ना। ऐसे स्वयं को सजाना है। इस ज़ोन की भी विशेषता है - जो बाप को अति प्रिय है। ऐसे बच्चे बहुत हैं - वह कौन? गरीब भी हैं और भोलेनाथ के भोले भी हैं - दोनों ही बाप को अति प्रिय हैं। इसलिए इस ज़ोन का ग्रुप देखो बड़ा है ना - इस ज़ोन की विशेषता है - इस ज़ोन में कितने अलग- अलग प्रदेश है - नेपाल भी है तो आसाम भी है, वैराइटी फूलों का गुलदस्ता है - सेवा भी अब विस्तार को पाती जा रही है। साकार तन को ढूंढा भी यहाँ से ही है। तो स्थान की विशेषता रही ना। जैसे गवर्मेन्ट को किस स्थान से कोई विशेष अमूल्य वस्तु मिलती है तो उस स्थान का महत्व रहता है - नामीग्रामी रहती है - हिस्ट्री में आ जाती है। ऐसे यह स्थान भी बाप की हिस्ट्री में विशेष स्थान है। आगे चलकर इस स्थान का महत्व विश्व में महत्वपूर्ण होगा - जैसे देहली की विशेषता अपनी है, बाम्बे की अपनी है। इस स्थान का महत्व भी बहुत बड़ा अपना है, इसलिए आगे चलकर और भी इस स्थान को विशेष भूमि की रीति से देखेंगे और सुनेंगे। ऐसे विशेष भूमि के निवासी भी विशेष आत्मायें हो। भूमि के साथ आप लोग के भाग्य का भी सब वर्णन करेंगे। अच्छा

सदा शक्तिशाली स्वरूप में स्थित रह माया दुश्मन को भी अपना भक्त बनाने वाले, सदा सजे सजाये स्वरूप में स्थित रहने वाले, वशीकरण मन्त्र द्वारा माया को वश करने वाले, सदा स्मृति द्वारा समर्थ रहने वाले, सर्वशक्तिवान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियो से मुलाकात

1. हर संकल्प वा कर्म बाप समान करने से - निरन्तर सहजयोगी की स्टेज का अनुभव :- संगमयुग का श्रेष्ठ स्थान है बाप का दिलतख्त, जो इस तख्त पर बैठते हैं वही विश्व के तख्त के अधिकारी बनते हैं। और जैसे बाप परमपूज्य है वैसे बच्चे भी पूज्य बन जाते हैं। क्योंकि दिल में वही समाये जाते हैं जो समान होते हैं, तो बाप समान फालो फादर करने वाली आत्मायें हो ना - ऐसे अनुभव होता है जो बाप की स्मृति वह बच्चों की स्मृति, जो बाप के गुण वह बच्चों के गुण, जो बाप का कर्त्तव्य वह बच्चे का। इसको कहा जाता है फालो फादर। जो भी संकल्प वा कर्म करो तो पहले चेक करो कि बाप समान है, अगर बाप समान है तो सहजयोगी की स्टेज का अनुभव होगा। मेहनत नहीं लगेगी। और कोई भी परिस्थिति में बाप को सामने लाने से, स्वस्थिति के आधार से परिवर्तन हो जायेगी। चाहे कितने भी देश के हालात नाजुक हों लेकन आप सदा कमलपुष्प के समान बाप की छत्रछाया में न्यारे और प्यारे रहेंगे। सदा छत्रछाया में हो ना? बाप सेवाधारी बन करके आते हैं तो छत्रछाया के रूप में बच्चों की सदा सेवा करते हैं। बाप को याद किया और साथ अनुभव किया, वैसे कोई भी शरीरधारी का साथ लेने में समय लग जाता है लेकिन बाप तो सेकेण्ड में हाज़र होगा - तो दूर रहते भी सदा समीप आत्मा हो ऐसा अनुभव होता है? जो जितना प्यारा होगा उतना समीप होगा - तो कितने समीप हो? अभी भी समीप हो और परमधाम में भी समीप होंगे फिर भविष्य में भी समीप - तो तीनों ही स्थानों के समीप हो ना। जहाँ भी ब्राह्मण बच्चों के पांव पड़ते हैं वहाँ कोई न कोई आत्मायें हैं तब जाना होता है। जो बच्चे बाप की याद में रहते हैं, याद में रहने वाले बच्चों को बाप सदा रेसपान्ड देते भी रहते हैं और सदा देते रहेंगे, क्योंकि याद द्वारा ही अनुभवों का अधिकार प्राप्त होता है।

भाषण ही सिर्फ सेवा का साधन नहीं है, अनुभव द्वारा भी प्रभावित कर सकते हो, अनुभव की टापिक सबसे ज्यादा अट्रैक्ट करने वाली होती है। सेवा ज़रूर करनी है, जैसे भी करो। सब सबजेक्ट में मार्क्स लेनी हैं, अगर एक भी कम रह गई तो पास विद आनद कैसे होंगे, इसलिए सब सबजेक्ट को कवर करो।

2. सारे कल्प में संगमयुग ही बहारी मोसम है :- सदा बहार के समान खिले हुए पुष्प खुशबूदार रूहे गुलाब अपने को समझते हो? जब बहार का मौसम आता है तो सब फूलों में रगत आ जाती है, खिल जाते हैं, सुन्दर लगते हैं, संगमयुग भी सारे कल्प के अन्दर बहारी मौसम है, जिसमें हरेक आत्मा रूपी पुष्प खिला हुआ रहता है। तो ऐसे अपने को सदा खिला हुआ अर्थात् सदा रूहानी याद में रहने वाला रूहे गुलाब समझते हो? कि कभी फूल से मुखड़ी भी बन जाते हो? जो पहले छोटी कली होती है वह बन्द होती है, फिर खिल जाती है तो फूल कहा जाता। तो सदा खिले हुए हो या कभी फूल या कभी कली। सदा खिला हुआ पुष्प वह है जो दूर से ही सबको आकर्षित करे। ऐसी रूहानियत है? जो भी सम्पर्क में आए उसको यह रूहानी खुशबू आकर्षित करे - खिले हुए फुल ही किसी को भेंट किये जाते। बापदादा के ऊपर भी खिले हुए फुल ही बलिहार होते हैं। जो सच्चे भक्त होते हैं वह कभी देवताओं पर सड़े हुए फूल नहीं चढ़ायेंगे, अच्छे खिले हुए फूल देवाताओं पर भेंट करेंगे। तो ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब हो जो बाप के ऊपर बलिहार हो सकें। सदा यह याद है कि हम किस बागवान के बगीचे के फूल हैं। डायरेक्ट बाप फूलों को अपने स्नेह का पानी दे रहे हैं, तो कितने लकी हो गये!

बापदादा सदा हर बच्चे को देख क्या सोचते? कि हर बच्चा विश्व के मालिक बने

हद के नहीं, स्टेट के नहीं लेकिन विश्व के। विश्व का मालिक कौन बनेंगे? जो विश्वकल्याणकारी होंगे? तो आप सब कौन हो विश्व पर राज्य करने वाले या स्टेट पर? जो विश्व पर राज्य करने वाले होंगे वह सदा बेहद की स्थिति में स्थित होंगे - सम्बन्ध, संस्कार स्वभाव सब बेहद में होंगे, हद नहीं होगी। हद की प्रवृति में अपना ज्यादा समय समय देते हो या बेहद में? बनना है बेहद का मालिक और समय देते हद में - तो क्या होगा? बेहद के मालिक बनने वाले बेहद की सेवा में ज़रूर लगेंगे। हद निमित्तमात्र, सारा अटेन्शन बेहद की सेवा में। बेहद में जाकर सेवा करो, सर्विस में नया मोड़ लाओ। बहुत समय से दिल में जो प्लैन हैं वह प्रैक्टिकल में लाओ। इस वर्ष की योजना बनाओ - कि इतने सेन्टर खोलने हैं - हैन्डस भी आटोमेटिकली निकल आते हैं। वहाँ के भी हैन्डस तैयार करो। अच्छा - ओम्शान्ति।